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कविता

रात्रि

शमशेर बहादुर सिंह


1
मैं मींच कर आँखें
कि जैसे क्षितिज
      तुमको खोजता हूँ।

 

2
ओ हमारे साँस के सूर्य!
साँस की गंगा
            अनवरत बह रही है।
      तुम कहाँ डूबे हुए हो?

 

 


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हिंदी समय में शमशेर बहादुर सिंह की रचनाएँ



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